चीता मित्र डकैत रमेश सिकरवार ने छोडा चीता मित्र का पद: बोले सडा गला मांस खाने में दे रहे है, लगातार भूखा रखने से मौत हो रही है

शिवपुरी। कूनो नेशनल पार्क में लगातार हो रही चीतों की मौत के बीच अब चीता मित्र पूर्व डकैत रमेश सिंह सिकरवार ने चीता मित्र के पद से त्यागपत्र दे दिया है। उन्होंने त्याग पत्र देने की वजह भी चौकाने बाली बताई है। उनका कहना है कि चीतों को कूनों में भूखा रखा जा रहा है। साथ ही उन्हें बांसा मांस दिया जाता है। जिसके चलते वह बीमार हो रहे है और उनकी मौत हो रही है।

अब भले ही कूनो पार्क प्रबंधन चीतों की मौत के पीछे अपना स्पष्टीकरण दे रहा है। परंतु इसी बीच चीता मित्र का यह आरोप चौकाने बाला है कि कही इन चीतों की मौत का कारण भूंखा रखना ही तो नहीं है। पूर्व डकैत रमेश सिंह ने कहा कि खुले जंगल या बड़े बाड़े में चीते भाग-दौड़ करके जानवर का शिकार 3-4 दिन में कर लें तो ठीक, नहीं तो उन्हें भूखा ही रहना होता है। वे एक के बाद एक लगातार हो रही चीतों की मौत से आहत हैं इसलिए चीता मित्र का पद छोड़ रहे हैं।

श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की सुरक्षा के लिए सितंबर 2022 में 90 गांवों के 457 लोगों को चीता मित्र बनाया गया था। इनमें सबसे बड़ा नाम रमेश सिकरवार का ही है, जो पहले डकैत थे। उन पर करीब 70 हत्याओं का आरोप था। उनका दावा है कि अधिकतर चीता मित्र पद छोड़ चुके हैं। अब 50 से कम चीता मित्र ही बचे हैं। सिकरवार ने बताया है कि कूनो नेशलन पार्क के अफसर चीतों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

कूनो में हालात यह है कि जब चीते 100-150 किलोमीटर दूर निकल जाते हैं, तब वन अमला एक्टिव होता है। इसके बाद आसपास के गांवों के लोगों को फोन करके सूचना दी जाती है। कई बार हम लोगों की सूचना पर अफसर ध्यान नहीं देते। चीतों के लिए जो डॉक्टर और टीमें तैनात हैं, वे भी इस बात का ख्याल नहीं रख रही हैं। सब लापरवाह हैं। इसी वजह से कीड़े पड़े और चीतों की मौत हो गई। अब लगातार मौतों के बीच उनके इस आरोप में कही न कही ​दम दिखाई दे रही कि आखिर यह भी एक बजह चीतों की मौत की हो सकती है।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि चीतों की सुरक्षा और देखरेख से जुड़े मुद्दों को लेकर मैंने कूनो के अधिकारी-कर्मचारियों से कई बार बात की। लेकिन व्यवस्थाओं में कोई सुधार नहीं किया गया। ऐसे में चीता मित्र बने रहने का कोई मतलब नहीं है। चीतों की जिम्मेदारी हमें यानी चीता मित्रों को दी जाती तो कूनो में एक भी चीते की मौत नहीं होती। सुरक्षा के लिए सभी चीता मित्र चप्पे-चप्पे पर तैनात रहते, जो चीतों की हर गतिविधि पर नजर रख उन्हें कूनो से बाहर निकलने ही नहीं देते।

सड़ा-गला मांस खिलाने की बजाए कभी बकरे तो कभी दूसरे जानवरों का मांस खिलाया जाता तो चीते भी भरपेट भोजन करते। रमेश सिंह सिकरवार ने बताया कि अब गिने-चुने चीता मित्र ही रह गए हैं। चीतों से जुड़ी मीटिंग से लेकर अन्य कामों के लिए जंगल जाना होता है तो अपने वाहन से खुद का डीजल-पेट्रोल जलाकर जाना पड़ता है। ऐसा कोई कब तक करेगा? उनके इस आरोप ने ​कूनो में चीतों की परवरिश का दाबा कर रहे पार्क प्रबंधन की पोल खोल दी है। अब इस आरोप में कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद ही स्पष्ठ होगा। परंतु अगर वह इस निर्णय पर पहुंचे है तो इस मामले में जांच भी गंभीरता से होना जरूरी है।

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