नाथ के नाथ बने बैजनाथ: कोलारस की राजनीति में उठा तूफान,महेन्द्र मायूस तो वीरेन्द्र रघुवंशी खुश,दो दोस्त अब आमने-सामने

सतेन्द्र उपाध्याय@ शिवपुरी। आज शिवपुरी जिले की राजनीति में उस समय हडकंप मच गया जब कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष रहे और सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड भाजपा का दामन थामने बाले पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष बैजनाथ सिंह यादव अपने समर्थकों के साथ भाजपा छोड कांग्रेस में शामिल हो गए। जिसके चलते अब पूरे जिले की राजनीति में बडा बदलाब देखने को मिल रहा है। जिले की राजनीति की बात करे तो सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद यह पहला मौका है जब किसी सिंधियानिष्ठ नेता ने कांग्रेस का दामन थामा हो।

इसे लेकर बीते लंबे समय से कयास लगाए जा रहे थे कि बैजनाथ सिंह यादव भाजपा को छोड कांग्रेस का दामन थाम सकते है। परंतु भाजपा डेमेज कंट्रोल करने में पूरी तरह से विफल नजर आई। बैजनाथ जैसे दिग्गज नेता ने भाजपा छोडने से पहले सिंधिया जी से मुलाकात कर उन्हें भी भाजपा छोडने की धमकी दी थी। परंतु सिंधिया जी ने उनकी इस धमकी को कोई तब्बजो नहीं दिया और आज नतीजा पूरे प्रदेश के सामने है। आज बैजनाथ सिंह यादव ने अपनी 130 कारों के काफिले के साथ कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय पहुंचकर कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सामने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की।

महेन्द्र यादव का ​टिकिट खतरे में
उनके कांग्रेस में जाने के बाद से अब कोलारस की राजनीति में बडी उठापठक देखने को मिलना तय है। राजनीतिक सूत्रों की माने तो कोलारस से कांग्रेस पार्टी ने बैजनाथ सिंह यादव को टिकिट के लिए हरी झंडी देने के साथ ही कांग्रेस पार्टी में शामिल किया है। जिसके चलते समाज के बोटों को आधार बताते हुए टिकिट मांग रहे पूर्व विधायक महेन्द्र​ सिंह यादव का टिकिट खतरे में आ गया है।

बताया जा रहा है कि बीते कुछ दिनों पूर्व तक कोलारस विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी और महेन्द्र यादव आमने सामने चुनाव लडे थे उस समय वीरेन्द्र रघुवंशी का साथ बैजनाथ सिंह यादव और उनके बेटे रामवीर सिंह यादव ने दिया था। वीरेन्द्र रघुवंशी और ​बैजनाथ सिंह यादव की दोस्ती के चलते ​वीरेन्द्र रघुवंशी ने विधानसभा का यह रास्ता तय किया था। परंतु अब राजनीति किस करवट बदलती है यह तो आने बाला समय ही बताएगा। परंतु अब यह तय माना जा रहा है कि कोलारस विधानसभा में भाजपा से ​वीरेन्द्र रघुवंशी का टिकिट पक्का माना जा रहा है।

विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी के टिकिट पर बने संशय के बादल छटे
इसके पीछे की बजह है यहां का जातिगत समीकरण। जातिगत समीकरण के चलते यहां सबसे ज्यादा प्रभाव यादव समाज का इस क्षेत्र में देखा जाता है। जिसके चलते जिस भी पार्टी को यहां से चुनाब लडना है उसे यादव जाति के बोट बैंक को सबसे पहले देखना होगा। जिसके चलते दोनों ही पार्टी यहां यादव समाज को साधने पर फोकस करती है। अब कांग्रेस ने अपना फोकस जब तय कर लिया तो अब इस क्षेत्र में पूर्व विधायक महेन्द्र यादव के टिकिट पर पानी फिरना तय है।

माना जा रहा था कि अगर किसी भी स्थिति में कोलारस विधानसभा से वीरेन्द्र रघुवंशी का टिकिट कटता है तो यहां कट्टर सिंधिया समर्थक माने जाने बाले महेन्द्र सिंह यादव को सिंधिया की अनुसंशा पर टिकिट दिया जाएगा। परंतु अब जब यादव समाज का बडा धडा यानी बैजनाथ के कांग्रेस में जाते ही अब भाजपा के पास यादव समाज में कोई ​भी ऐसा दिग्गज नहीं है जो यहां की राजनीति में यादव समाज को एकजुट करने के लिए बैजनाथ सिंह यादव की काट निकाल सके।

जिसके चलते अनुमान अब यह लगाया जा रहा है कि अभी बैजनाथ सिंह यादव और उसके बेटे रामवीर यादव जो वीरेन्द्र रघुवंशी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडे थे अब दोनों एक दूसरे के सामने चुनाब लडते हुए दिखाई देंगे। हांलाकि अब कोलारस विधानसभा में चुनाब और भी ज्यादा रोचक होने के आसार है। अब देखना यह है कि यहां राजनीति आने बाले चुनाब से पहले किस हद तक करवट बदलती है।

वैश्य बोटर का क्या?
इस ​विधानसभा में सबसे ज्यादा प्रभाव यादवों के बाद बैश्य समाज के बोटरों का रहता है। जिसके चलते यहां से पत्ते बाला परिवार टिकिट की चाह रखता है। इस विधानसभा से पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन भी ​टिकिट की मांग करते आ रहे है। परंतु भाजपा अब पहले बाली भाजपा नहीं है। अब भाजपा भी दो भागों में बटी हुई है। एक है मूल भाजपा और दूसरी सिंधियानिष्ठ भाजपा। अब मूल भाजपा और ग्राउण्ड के सर्वे के आधार पर अगर टिकिट दिया गया तो यहां विधायक वीरेन्द्र रघुंवशी का नाम फाईनल है। परंतु अगर यह समुदाय के बोटरों को देखते हुए टिकिट दिया गया फिर देवेन्द्र जैन फिर से दाबेदारी दिखा सकते है। परंतु भाजपा के ऐज फैक्टर में देवेन्द्र जैन भी बाहर होते हुए दिखाई दे रहे है। दूसरी और वैश्य समुदाय से दूसरा नाम जितेन्द्र जैन गोटू का आता है। यह भी टिकिट की चाह पाले हुए बैठे है। परंतु बीते कुछ दिनों से यह भी असंतोष का दंश झैल रहे है। लगातार अनुमान लगाया जा रहा था कि यह भी भाजपा को छोड कांग्रेस का दामन थाम सकते है।

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