ओवान को रास नहीं आ रहा कूनों का जंगल,अब माधव नेशलन पार्क में पहुंचा,अगर चीता और TIGER का आमना सामना हुआ तो क्या होगा ?

शिवपुरी। श्योपुर के कूनों में बीते दिनो पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन के अवसर पर भारत में 70 साल बाद फिर से चीतों की फिर से बसाया है। जिसके चलते कूनों में पहले 12 और उसके बाद 8 चीतों को जंगल में छोडा गया है। जिसमें से एक मादा चीते की मौत हो गई थी। उसके कुछ दिनों बाद एक मादा चीते ने 4 शावकों को जन्म दिया है। इसके साथ ही अब कूनों के जंगल में चीतों की संख्या 23 हो गई है। यह चीते दिन भर कूनों के जंगल मे धमाचौकडी मचा रहे है। परंतु इन चीतों में से एक चीता ओवान चंचल प्रबत्ति का है और उसे कूनो का जंगल राश नहीं आ रहा है। एक माह के भीतर यह चीता तीसरी बार कूनों का जंगल छोडकर माधव नेशनल पार्क की और भाग रहा है।

बीते दिनों इस ओवान की लोकेशन बैराड थाना क्षेत्र के जौराई गांव में थी। उसके बाद यह चीता बैराड के कृषि उपज मंडी में देखा गया। सोमवार को ओवान मारौरा झलवासा गांव के आस-पास देखा गया था। सोमवार को मारौरा झलवासा और जरिया खुर्द के बीच ओवान ने एक हिरण का शिकार किया था। परंतु अब इस चीते की लोकेशन सतनवाडा थाना क्षेत्र में मिल रही है। बताया गया है कि यह चीता अब सतनवाडा थाना क्षेत्र के चिटौरा चिटौरी गांव के आसपास घूम रहा है।

जिसके चलते यहां इसके पीछे फोरेस्ट की टीम लगातार ट्रैकिंग कर रही है। इस ओवान के माधव नेशनल पार्क में प्रवेश करते ही अब इस नेशलन पार्क में बिग कैट की पूरी फैमली मौजूद है। जिसमें इस पार्क में पहले से तेदुआ माजूद है,अब इस पार्क में टाईगर छोडे जा चुके है और आज इस पार्क में चीता भी अपनी दस्तक दे चुका है। अब पार्क प्रबंधन को चीते का डर है कि कही तेदुआ इसपर हमला न बोल दे।

सालो पहले कूनो नेशनल पार्क में सिंह परियोजना के तहत गुजरात से गिर के बब्बर शेर लाए जा रहे थे,लेकिन तत्काल गुजरात सरकार ने पहले तो शेर देने का वादा कर मना कर दिया था जब बवाल भी मचा था मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था,सिंह परियोजना के तहत कूनो नेशनल पार्क की सीमाओं का विस्तार किया था और गांवों के विस्थापन के लिए मुआवजे के रूप में 75 करोड़ रुपए खर्च किए थे,लेकिन गिर के शेर नहीं आए। इसके बाद विदेशी चीते लाने की तैयारी पूरी की गई थी।

इस प्रोजेक्ट का बजट भी 75 करोड़ रुपए से अधिक है। कुल मिलाकर सिंह परियोजना से लेकर विदेशी चीतो के सफर ओर इनके 5 साल तक रखरखाव और सुरक्षा पर और तमाम तरह की निर्माण कार्य मिलाकर 200 करोड़ रुपए का बजट का हिसाब है।

चीता प्रोजेक्ट से जुड़े रहे डब्ल्यूआईआई के पूर्व डीन वायबी झाला का कहना है कि चीता के लिहाज से माधव नेशनल पार्क अच्छी जगह है। वहां भी चीतों के लिहाज से सर्वे किया गया था। उस वक्त यहां भी चीता छोड़ने की भी योजना थी। चीता को माधव नेशनल पार्क में तब तक कोई दिक्कत नहीं है, जब तक उसका सामना टाइगर से न हो।

उनका कहना है कि यह नामीबियाई चीता जहां से आए हैं, वहां पर वह शेरों के साथ तो रहते रहे हैं और उनको उनसे बचने की कला भी आती है, लेकिन टाइगर को वह पहली बार देखेगा, ऐसे में उसका रिएक्शन क्या होगा, परिणाम क्या होंगे, यह कहना मुश्किल है। ऐसे में रिस्क तो है ही । चीता की जान भी इसमें जा सकती है, लेकिन पार्क प्रबंधन और प्रोजेक्ट से जुड़े अफसर इस पर विचार कर ही रहे होंगे और जरूरी कदम उठाए जा रहे होंगे।

इनका कहना है
चीता ओबान माधव नेशनल पार्क में पहुंच गया है। उसको अभी उसकी इच्छा से बढ़ने दिया जा रहा है। ट्रेंकुलाइज करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जानवर बेवजह एक-दूसरे पर अटैक नहीं करते हैं। कई क्षेत्रों में यह साथ ही रहते हैं। नामीबिया में भी यह चीते शेर और तेंदुए के साथ ही रहते थे।
प्रकाश वर्मा,डीएफओ,कूनो नेशनल पार्क

Advertisement

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *