लंबे समय बाद बिना सिंधिया फैक्टर के चुनाव लडेगी कांग्रेस, क्या भाजपा विधानसभा चुनाव में जिले में कांग्रेस का कर पाएगी सूपडा साफ

शिवपुरी। जब से ज्योतिरादित्य सिधिया ने कांग्रेस को छोड भाजपा का दामन थामा है तब से जिले में कांग्रेस में कोई धनी धौरी नहीं बचा है। कांग्रेस पूरी तरह से धरासाई हो गई है। इस कमजोर कांग्रेस में जागृति लाने के लिए अभी हाल ही में पोहरी विधानसभा के बैराड में कमलनाथ की एक सभा का आयोजन किया गया था। जिसमें कमलनाथ ने शिवपुरी में पूरी तरह से मुरझाई कांग्रेस में नया जोश भरने का प्रयास किया। पोहरी में बसपा से चुनाव लडते आ रहे कैलाश कुशवाह ने भी इस रैली में कांग्रेस का दामन थाम लिया। जिसके चलते अनुमान लगाया जा रहा है कि पोहरी से कैलाश कुशवाह कांग्रेस के टिकिट के प्रमुख दाबेदार है।
आगामी विधानसभा चुनाव शिवपुरी जिले में सिंधिया फैक्टर के जनाधार की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है। लंबे समय पश्चात कांग्रेस विधानसभा चुनाव अपने बलबूते पर लडऩे जा रही है। सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य कांग्रेस के साथ नहीं है। राजनीति में सक्रिय केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश सरकार की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया दोनों भाजपा में हैं। 1967 से 1980 तक का फेज भी लगभग ऐसा ही रहा था, जब राजमाता विजयाराजे सिंधिया और उनके सुपुत्र माधवराव सिंधिया दोनों जनसंघ में थे और उस दौर में जिले में कांग्रेस का कोई नामलेवा नहीं था। ऐसी स्थिति में अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या भाजपा आगामी विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस का पूर्व सफाया करने में सफल हो पाएगी अथवा नहीं। कांग्रेस के लिए भी 2023 का चुनाव परीक्षा की घड़ी है।
1980 में स्व. माधवराव सिंधिया जब जनसंघ छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए और उनके नेतृत्व में 1980 और 1985 का विधानसभा चुनाव शिवपुरी जिले में लड़ा गया, तब जिले में पहली बार कांग्रेस मजबूत रूप से उभरकर सामने आई। कांग्रेस ने जिले की पांचों सीटों पर दोनों चुनाव में कब्जा किया। उस समय राजमाता विजयाराजे सिंधिया विपक्ष में थीं और उनका पूरा ध्यान राष्ट्रीय राजनीति पर केन्द्रित था। जिले में कांग्रेस की सफलता का श्रेय स्व. माधवराव सिंधिया को दिया गया।
1989 मेंं यशोधरा राजे सिंधिया शिवपुरी जिले की राजनीति में सक्रिय हुईं और उनके कमान संभालने के बाद पांचों सीटों पर भाजपा ने विजय परचम फहराया तथा प्रदेश में सरकार बनाने में सफलता हांसिल की। इसके बाद हुए चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बीच लगभग संतुलन की स्थिति रही। इसका मुख्य कारण यह था कि कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों में सिंधिया फैक्टर की उपस्थिति थी।
स्व. माधवराव सिंधिया के निधन के बाद उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया 2001 से राजनीति में सक्रिय हुए और उन्होंने तब से लेकर 2020 तक कांग्रेस की कमान संभाली। 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवपुरी जिले की पांच सीटों में से तीन सीटों करैरा, पोहरी और पिछोर में कांगे्रस ने जीत हांसिल की। इनमें दो सीटों पर सिंधिया समर्थक विजयी हुए। जबकि पिछोर विधानसभा सीट दिग्गी समर्थक केपी सिंह ने जीती। भाजपा ने शिवपुरी और कोलारस में विजयश्री का वरण किया। 2020 में सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और उनके समर्थन में शिवपुरी के दोनों सिंधिया समर्थक विधायकों ने भी कांग्रेस और विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा से चुनाव लड़ा।
उस चुनाव में एक सीट पर भाजपा और एक सीट पर कांग्रेस विजयी हुई। उन दोनों उपचुनावों में कांग्रेस सिंधिया फैक्टर के बिना चुनाव लड़ी थी और इस आधार पर उसका प्रदर्शन अधिक खराब नहीं कहा जा सकता। लेकिन कांग्रेस की असली परीक्षा 2023 के विधानसभा चुनाव में है। अभी तक कांगे्रस की ओर से जिले की विधानसभा सीटों में जो दावेदार रहते थे। वह अब भाजपा में हैं। इससे भाजपा में उम्मीदवारों की संख्या काफी बढ़ गई है। जबकि कांग्रेस को सिर्फ पिछोर को छोड़कर सभी विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार की तलाश करनी होगी। ऐसे में एक संभावना यह भी है कि भाजपा के टिकट अकांक्षी उम्मीदवारों को यदि टिकट नहीं मिला तो वे कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं।