बेटियों के जुनून ने बदली जिंदगी:जब पहली महिला फॉरेस्ट गाईड बनी तो झेला पु​रूष गाईडों का विरोध,और फिर बदल गई जिंदगी

शिवपुरी। हिंदी में एक कहाबत है मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके हौसलों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौंसलों से ही उड़ान होती है। ऐसा ही एक कहानी शिवपुरी की प्रियंका चतुर्वेदी की है। जो माधव नेशनल पार्क की पहली महिला गाईड है। उन्होंने अब अपने दोस्त जंगली जीबों को बनाया है। और अब वह जंगल में वेवाक तरीके से घूमती है और लोगों को गाईड करती है।

आज हम शिवपुरी की प्रियंका चतुर्वेदी सफलता की कहानी आज हम आपको बताने जा रहे है। जिन्होंने संर्घष के बल पर खुद ही अपनी कहानी लिखी है। और एक ऐसे फील्ड में पहुंची है जहां महिलाएं अकेले जाने से डरती थी।

शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में गाईड बनी प्रियंका की कहानी भी ऐसी है। जब उन्होने शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में पहली महिला गार्ड के रूप में ज्योईन किया तो उन्हें काफी संघर्ष से गुजरना पडा।

शादी के बाद फॉरेस्ट गाइड की जॉब भी आसान नहीं थी। परिवार वालों को समस्या तो नहीं थी, लेकिन गाइड की नौकरी के लिए मनाना इतना आसान भी नहीं रहा। उन्होंने रागिनी फाउंडेशन के माध्यम से परिजनों को मनाने में कामयाबी मिली। फॉरेस्ट गाइड की 2 महीने की ट्रेनिंग के बाद शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में ड्यूटी लग गई। अब जब वह ड्यूटी पर पहुंची तो वहां पहुंचकर देखा तो वहां सभी गाईड पुरूष थे। वह अकेली महिला थी। जिससे वह अपने आपको असहज महसूस नहीं कर रही थी।

जब वह पहली वार ड्यूटी पर पहुंची तो वहां उसे ड्यूटी देने के मूड में कोई भी तैयार नहीं था। उसे ड्युटी देने के लिए पहले दिन विरोध हुआ। उन्होंने बताया कि पहले दिन उनसे किसी ने बात तक नहीं की। उसके बाद दूसरे दिन वह फिर पहुंची तो फिर भी उन्हें अपने आप में अलग सी फीलिंग महसूस हुई। कोई भी उन्हें कुछ भी बताने तैयार नहीं था। जिसके चलते उन्हें लगने लगा कि यहां तो काम करना बहुत मुश्किल है।

लगातार वह 4 दिन तक पहुंची परंतु वहां किसी ने उनकी ड्यूटी नहीं लगाई। उसके बाद 5 वां दिन आया और आखिरकार उन्हें उनका मुकाम मिल गया। जिसके लिए वह ​इंतजार कर रही थी। 5 वें दिन उनकी ड्यूटी लगाई गई। और वह पहली बार ट्यूरिस्ट को जंगल में सफारी के लिए लेकर गई। प्रियंका ने बताया है कि वह पल उनके लिए सबसे अच्छा पल था और अब वह आत्मनिर्भर बनकर पर्यटकों को जंगल सफारी पर लेकर गई। जब लौटी तो पर्यटकों ने अन्य पुरूष गाईडों से उनकी तारीफ की। जिससे चलते पुरूष गाईड भी समझ गए कि अब वह यहां अच्छे से काम कर सकती है।

प्रियंका ने बताया है कि उनकी जिद ने ही उन्हें यह सफलता दिलाई। उसके बाद उनके पीछे एनजीओं की मेडम दीपा दीक्षित और परिजनों का भी भरपूर साथ मिला और उन्होंने हार नहीं मानी वह जंगल में जंगली जीबों के बीच काम करने लगे। प्रियंका ने बताया कि वह पहले फायनेंस में जॉव करती थी। उसके बाद उन्होंने फाय​नेंस की जॉव छोडकर टीचर की जॉव की। कोरोना में वह जॉव भी छूट गई। जिसके चलते उन्होंने फॉरेस्ट गाईड की राह चुनी। उसके बाद उन्होंने 2 माह की ट्रेनिंग भी ली।

उन्होंने बताया है कि शिवपुरी नेशनल पार्क में तेंदुए सबसे ज्यादा है। तेंदुओं से उनका कभी सीधा सामना तो नहीं हुआ। लेकिन तेदुआ उनके आजू बाजू से गुजरते रहते है। यहां शिवपुरी के नेशनल पार्क में जब हिरण कूंदते है तो दिल प्रपुल्लित हो जाता है। उन्हें जब उछलकूद करते देखते है तो ड्यूटी पर कभी भी थकान महसूस नहीं होती। हां शनिवार और रविवार को कुछ हद तक थकान होती है। परंतु जंगल में पशु पक्षियों को देखकर यह महसूस नहीं होती।

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