रात 11 बजे से शुरू होगा होलिका दहन का मुहुर्त: पढिए होलिका दहन का क्या है महत्व,700 साल बाद बन रहा है शुभ संयोग

शिवपुरी। भारत अनेकता में एकता का देश है। यहां भारत को एक मोती में पिरोकर रखने का काम करते है यहां के त्यौहार। यहा समुदायों की सख्यां भले ही अलग अलग है। परंतु यहां सभी धर्मो के लोग यहां सभी त्यौहारों को पूरी धूमधाम से मनाते है जो भारत को विश्व के पटल पर अलग जगह रखता हैं। भारत में होली, दिवाली, मकर संक्रांति, रंक्षाबंधन आदि हिंदू धर्म के मुख्य त्योहारों में से एक हैं जो कि हमारे देश के साथ-साथ आजकल विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

इन्हीं त्योहारों में से एक पर्व है होली का त्योहार। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। अक्सर होलिका दहन देखते समय हमारे मन में ये सवाल आता है कि आखिर क्यों हर साल होलिका दहन किया जाता है और क्यों ये प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसी के चलते आज देश में होलिका दहन पूरे धूमधाम से किया जाएगा।

भारत में आज शाम भद्रा होने के कारण रात 11 बजे बाद होलिका दहन होगा। इसके लिए शुभ मुहूर्त रात 11 बजे से शुरू होगा, हालांकि भद्रा काल में होली की पूजा जरूर की जा सकती है। जिसके लिए शाम को प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त के बाद शुभ मुहूर्त रहेगा। सूर्यास्त के बाद अगले ढाई घंटे तक यानी प्रदोष काल में भद्रा रहे तो भी पूजा कर सकते हैं, लेकिन होलिका दहन भद्रा दोष खत्म होने के बाद करना चाहिए, इसलिए शाम 6.24 से 6.48 तक होली पूजा का मुहूर्त रहेगा। ये गोधूलि बेला का समय होगा। वहीं, होलिका दहन का मुहूर्त रात 11.15 से 12.25 तक रहेगा।

इस बार होलिका दहन के वक्त सर्वार्थसिद्धि, लक्ष्मी, पर्वत, केदार, वरिष्ठ, अमला, उभयचरी, सरल और शश महापुरुष योग बन रहे हैं। ज्योतिषियों का कहना है कि ऐसा शुभ संयोग पिछले 700 सालों में नहीं बना। इन 9 बड़े शुभ योग में होली जलने से परेशानियां और रोग दूर होंगे। ये शुभ योग समृद्धि और सफलतादायक रहेंगे।

क्या है होलिका दहन के पीछे की कहानी
भारत में रंगों का त्योहार होली से पहले होने वाले होलिका दहन के पीछे की बहुत सी पौराणिक कहानियों का उल्लेख मिलता है। इसमें पहली कहानी भक्त प्रह्लाद की कहानी है। यहां भक्त प्रहलाद के अटूट विश्वास और बुराई पर अच्छाई की विजय की जीत की कहानी मिलती है और दूसरी श्रीकृष्ण और राधा रानी से जुड़ी पौराणिक कथा मिलती है। आइए जानें होलिका दहन की प्रचलित पौराणिक कथा जिनके अनुसार होलिका दहन करने की ये परंपरा शुरू हुई।

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय में हिरण्यकशिपु नाम का एक राक्षस राजा था। दैत्यों के इस राजा ने भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान प्राप्त किया कि वह न तो दिन में मरेगा और न ही रात में, न तो मनुष्य और न ही जानवर उसे मार सकेंगे। यह वरदान प्राप्त करने के बाद, हिरण्यकश्यपु बहुत अहंकारी हो गया और उसने सभी से उसे भगवान के रूप में पूजा करने की मांग करने लगा। उसका एक पुक्ष था प्रह्लाद। उसका पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही अपने पिता के बजाय भगवान विष्णु के प्रति भक्ति रखता था और उन्हीं की पूजा-अर्चना करता था।

राजा हिरण्यकशिपु को उसकी भगवान विष्णु के प्रति भक्ति पसंद नहीं थी और वो अपने पुत्र से बहुत क्रोधित रहता था। हिरण्यकश्यपु ने उसे मरवाने के कई प्रयास किए और उसे बहुत सी यातनाएं भी दीं लेकिन फिर भी प्रह्लाद बच गया। अंत में हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को डिकोली पर्वत से नीचे फेंक दिया। डिकोली का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण के 9वें स्कंध में मिलता है।

पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यपु ने अपने बेटे को दंडित करने के लिए, अपनी बहन होलिका से मदद मांगी, जो आग से प्रतिरक्षित थी। उनके पास एक चुनरी है, जिसे पहनकर वह आग के बीच बैठ सकती हैं जिसे ढकने से आग का कोई असर नहीं होताय हिरण्यकश्यपु और होलिका ने प्रह्लाद को जिंदा जलाने की योजना बनाई। होलिका ने धोखे से प्रह्लाद को अपने साथ आग में बैठा लिया, लेकिन दैवीय हस्तक्षेप की वजह से प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने बचा लिया और होलिका उस आग में जल गई।

होलिका प्रह्लाद को वही चुनरी ओढ़कर गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई जिसपर आग का कोई असर नहीं होता था, लेकिन भगवान की माया का असर यह हुआ कि हवा से होलिका के ऊपर से वह चुनरी उड़कर प्रह्लाद पर जा गिरी। इस तरह प्रह्लाद एक बार फिर बच गया और होलिका उस आग में जल गई। इसके तुरंत बाद, भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया और गौधुली बेला यानी न दिन और न ही रात में डिकोली स्थित मंदिर की दहलीज पर हिरण्यकश्यपु को अपने नाखूनों से मार डाला। तब से लेकर अब तक पूरे देश में होली से एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है। यह पूरी कहानी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यही कारण है कि होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है।

क्या है मथुरा वृद्धावन की होली का महत्व
भारत में भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में जन्म लिया। मथुरा वृंदावन में होली मनाने के पीछे किंवदंती यह है कि चूंकि कृष्ण गहरे रंग के थे, वे अपनी मां से पूछते थे कि उनकी प्यारी राधा उनसे गौरी क्यों है? उनके इस सवाल का जवाब माता यशोदा देते हुए कहती हैं कि यह उसका रंग है लेकिन वह उसे अपनी इच्छानुसार किसी भी रंग में रंग सकते है। जिसके बाद कृष्ण ने राधा को रंग में रंग दिया। कृष्ण के राधा के चेहरे पर रंग लगाने की इस घटना से चेहरों पर रंग डालने की रस्म का उदय हुआ। कृष्ण अपनी शरारतों से राधा और उनकी सखियों को परेशान करते थे और राधा के गाँव के निवासी उनसे दूर हो जाते थे।

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