चुनाव से पहले ही हाफ गई कांग्रेस: सिंधिया के सामने वीरेन्द्र नहीं तो फिर कौन होगा कांग्रेस प्रत्याशी? सबाल बडा है हर दहलीज पर खडा है ?

सतेन्द्र उपाध्याय@ शिवपुरी। खबर राजनीति से जुडी हुई है। जहां गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा ने सिंधिया को हराने बाले डॉ केपी यादव का टिकिट काटकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को उम्मीदवार घोषित करते ही कांग्रेस से टिकिट के सपने संजोए बैठे नेताओं के सामने संकट खडा हो गया है। माना जा रहा था कि शिवपुरी जिले से भाजपा छोड कांग्रेस का दामन थामने बाले तेज तर्रार नेता वीरेन्द्र रघुवंशी को जब विधानसभा में टिकिट नहीं दिया तो अनुमान लगाया जा रहा था कि उन्हें सिंधिया के खिलाफ कांग्रेस पार्टी अपना उम्मीदवार बनाएगी। परंतु जैसे जैसे टिकिट बितरण की सूची आने लगी तो वीरेन्द्र रघुवंशी ने अपनी ही उम्मीदवारी से इंकार कर दिया। अब सबाल बडा है और हर घर की दहलीज पर खडा है कि सिंधिया के सामने वीरेन्द्र नहीं तो आखिर कौन
जी हां हम बात कर रहे है लोकसभा चुनाव को लेकर गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में सिंधिया को टक्कर देने के लिए यहां कांग्रेस इस चुनाव को जातिगत मोड पर ले जाने के मूड में है। यहां कांग्रेस पार्टी केपी यादव का टिकिट काटने के नाम पर यादव समाज के रूठने की बात कहकर इस चुनाव में कूंदने की तैयारी में है। हालात यह है कि इस चुनाव में कांग्रेस को अब उम्मीदवार नहीं मिल रहा जो सिंधिया का सामना कर सके।
राजनीतिक सूत्रों की माने तो पहले तो अनुमान लगाया जा रहा था कि पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा से केपी यादव को बिजयश्री दिलाने में वीरेन्द्र रघुवंशी का अहम योगदान रहा है। जिसके चलते केपी यादव ने अपनी समाज के लोगों को साध लिया। इस लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां यादव समाज के बोटर लगभग 3 लाख से अधिक है। वही दूसरी और रघुवंशी समाज के बोटरों की बात करें तो वह भी 1 लाख के लगभग है। अनुमान यह लगाया जा रहा था कि इन दोनों बडे बोट बैंक के जरिए वीरेन्द्र रघुवंशी इस चुनाव में उतर सकते है।
परंतु लास्ट टाईम पर वीरेन्द्र रघुवंशी ने इस चुनाव में बेटे की शादी का हबाला देते हुए चुनाव लडने से इंकार कर दिया। जिसके चलते अब कांग्रेस के सामने सबाल खडा हो रहा है कि आखिर ऐसा कौन प्रत्याशी है तो सिंधिया को हरा नहीं सके परंतु कम से कम टक्कर तो दे सके। इसमें नाम आया है पोहरी के पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला का। इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सिंधिया के कांग्रेस में रहते समय अगर सबसे ज्यादा परेशानी खडी की थी तो वह थे हरिवल्लभ शुक्ला।
इसके साथ की भाजपा पर इस क्षेत्र में ब्राह्मण समाज की नाराजगी के आरोप लगातार लगते रहे है। इसके जरिए कांग्रेस इस आरोप को मुद्दा बनाकर ब्राह्मण उम्मीदवार को भी उतार सकती है। परंतु यहां भी यह बडा सबाल है कि हरिवल्लभ शुक्ला शिवपुरी की राजनीति मेंं तो सक्रिय है परंतु उसकी सक्रियता महज टिकिट वितरण तक ही सीमित दिखाई देती है। वह हर चुनाव में टिकिट की मांग तो करते है। परंतु जब टिकिट नहीं मिलता तो वह फिर से पूरी तरह से निष्क्रिय होकर घर बैठ जाते है। अब सिंधिया जो अपना चुनाव हारने के बाद भी क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे है। भाजपा में आने के बाद वह केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में जगह बनाकर लगातार शिवपुरी के विकास की बात करते रहे है अब क्या हरिवल्लभ उन्हें चुनौती दे पाएगे। यह सबाल बडा है।
अब बात करते है यादव समाज की तो यहां कांग्रेस दूसरी और चाहती है कि सिंधिया के सामने एक बडे बोट बैंक को आधार बनाकर यहां से किसी यादव समाज के उम्मीदवार को चुनाव में उतारा जाए। उसके चलते यहां चर्चा होने लगी कि कांग्रेस के दिग्गज नेता अरूण यादव को कांग्रेस यहां से उम्मीदवार बना सकती है। परंतु आज के जो हालात है और मोदी के तूफान में अरूण यादव भी यहां से चुनाव लडने से डर रहे है। फिर से यहां सबाल खडा यह हो रहा है कि जब बडे नेता चुनाव लडने तैयार नहीं है तो क्या फिर किसी छोटे नेता यानी के पी यादव जैसे नेता को यहां से उतारा जा सकता है।
जिसके चलते अब यहां से अनुमान लगाया जा रहा था कि यादवेन्द्र यादव जो कि देशराज यादव के सुपुत्र है वह सिंधिया के सामने उम्मीदवार बनाने की चर्चा चल रही थी। अगर यादवेन्द्र यादव की बात करें तो यह यादव समाज का बडा चेहरा है और उसने पिता स्व राव देशराज सिंह यादव हमेशा से यादव समाज सहित गुना शिवपुरी और अशोकनगर में बडा प्रभाव माना जाता है। यह सिर्फ शिवपुरी विधानसभा छोडकर अन्य सभी विधानसभाओं में सिंधिया जी को कडी टक्कर दे सकते है। परंत यहां भी हालात यह है कि मोदी लहर के चलते यह भी चुनाव में उतनी दमदारी नहीं दिखा पा रहे है कि वह सिंधिया को टक्कर दे सके। फिर एक और दामोदर यादव जो दतिया जिले के निवासी है। परंतु यह भी यादव बोट बैंक को साधने में सफल हो सकते है। जिसे लेकर दामोदर यादव भी समाज के नाम पर ताल ठौकने तैयार है। परंतु दामोदर यादव सिर्फ समाज के नाम यहां चुनाव में उतरने के मूड में है। कुल मिलाकर सबाल बडा है और हर दहलीज पर खडा है कि इस चुनाव में सिंधिया के सामने वीरेन्द्र नहीं तो कौन अब यह तो स्पष्ट तभी हो सकेगा जब यहां से कांग्रेस की सूची में नाम स्पष्ट हो सकेगा।