संत और सज्जनों की निष्क्रियता समाज के लिए घातक,अच्छे लोगों के निष्क्रिय होते ही दुर्जन हो जाते है सक्रिय: बाल मुनि

शिवपुरी। हमारे समाज में दुर्जनों का बाहुल्य है, यह समस्या नहीं है। समस्या यह है कि अधिकांश सज्जन पुरुष निष्क्रिय होते हैं और बुराईयों का मुकाबला करने के स्थान पर वह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि हमें क्या करना है। संत और सज्जनों की निष्क्रियता समाज के लिए सबसे अधिक घातक है। जिस समाज में संत और सज्जन निष्क्रिय हो जाते हैं वहां दुर्जनों की सक्रियता बढ़ जाती है।

उक्त उद्गार प्रसिद्ध जैन संत कुलदर्शन विजय जी ने आराधना भवन में आयोजित जैन रामायण प्रवचन श्रृंखला में व्यक्त किए। आज की प्रवचन माला में उन्होंने राजा दशरथ, भरत, उर्मिला, विभीषण, सबरी और जटायु की विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनकी अच्छाईयों का अनुकरण करने की अपील की। प्रवचन माला में संत कुलरक्षित विजय जी, पूज्य साध्वी शासनरतना श्रीजी, साध्वी अक्षयनंदिता श्रीजी और साध्वी मंडल की गरिमापूर्ण उपस्थिति थी।

बाल मुनि के नाम से विख्यात संत कुलदर्शन विजय जी ने एक कहानी के माध्यम से स्पष्ट किया कि भगवान राम से बड़ा उनका नाम है। उन्होंने कहा कि भगवान जब तक संसार में रहते हैं, तब तक अनेक लोगों को तारते हैं। लेकिन संसार से जाने के बाद उनका नाम लाखों करोड़ों लोगों को तारता है। उनके अनुसार प्रभू से बड़ा प्रभू का नाम है।

इस सिलसिले में उन्होंने बाल्मिकी का उदाहरण देते हुए कहा कि उनसे राम-राम जपने को कहा गया था लेकिन राम-राम के स्थान पर उन्होंने मरा-मरा का जाप किया और यही जाप उनके कल्याण का कारण बना। क्योंकि उनकी भावना निर्दोष थी। उन्होंने प्रभू स्मरण के अलावा प्रभू के काम और प्रभू के धाम की शक्ति का भी बखान किया।

उन्होंने बताया कि प्रभू का काम वह होता है, जब किसी रोते हुए व्यक्ति के आंसू पौछे जाएं। किसी बेसहारे को सहारा दिया जाए। उन्होंने पुण्य और परमार्थ के निस्वार्थ भाव से किए गए काम को प्रभू का काम बताया। महाराज श्री ने धर्म प्रेमियों से यह भी अपील की कि साल में प्रत्येक वर्ष वह परिवार सहित प्रभू के धाम अर्थात तीर्थस्थल के दर्शनों के लिए अवश्य जाएं। इससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।

वचन, समपर्ण, त्याग, सत्य, भक्ति, शक्ति सीखें रामायण के पात्रों से
संत कुलदर्शन विजय जी ने रामायण को श्रेष्ठ धार्मिक ग्रंथ बताते हुए कहा कि रामायण के पात्रों से हम कुछ न कुछ अवश्य सीख सकते हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि राजा दशरथ से हम शब्दों का मूल्य, भरत से समर्पण, उर्मिला से त्याग, विभीषण से सत्य, सबरी से भक्ति और जटायु से शक्ति का उपयोग सीख सकते हैं।

मरते हुए इंसान को जीवन गंवाने की पीड़ा करती है दुखी
संत कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि मरते हुए इंसान को मौत से अधिक इस बात की ज्यादा पीडा होती है कि उसका यह बहुमूल्य जीवन यूं ही व्यर्थ चला गया और इस समय का वह सदुपयोग नहीं कर पाया। जबकि मानव जीवन आसानी से नहीं मिलता।

उन्होंने प्राचीन धार्मिक ग्रंथ में उल्लेखित ययाति का उदाहरण देते हुए कहा कि 100 वर्ष के बाद जब मृत्यु उनके नजदीक आई तो उन्होंने कहा कि मैं इन वर्षों में कुछ नहीं कर पाया, मुझे और जीवन चाहिए। यह कहकर उन्होंने 1 हजार वर्ष की आयु पाई। लेकिन 1 हजार वर्ष के बाद भी ययाति खाली हाथ रोते हुए गए कि उन्होंने अपना यह बहुमूल्य जीवन व्यर्थ गवा दिया। इस उदाहरण से समय की महता रेखांकित करते हुए बाल मुनि ने कहा कि शुभ कार्यो में देरी नहीं करना चाहिए।

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