इंसान की जान बचाना 2 छात्रों को पड़ा मंहगा: डकैत बनाकर भेज दिया जेल, पिता घटना से अनजान,मां बोली-मेरा बेटा बेगुनाह है, संगठन ने दी आंदोलन की चेतावनी

प्रिंस प्रजापति@शिवपुरी। किसी इंसान की जान बचाना दो छात्रों को किस कदर महंगा पढ़ा है, इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चला है जिसमे इन छात्रों के सपोर्ट में लोग खुलकर बोल रहे है। लेकिन लोग सोशल मीडिया तक ही सीमित है और दूसरी ओर यहां हालत यह है कि एक लाचार पिता को पता नहीं है की उसका बेटा मानवता के चलते जेल की सलाखों के पीछे है।

दरअसल बीते 11 दिसंबर को ट्रेन में हार्ट अटैक आने पर कुलपति की जान बचाने के लिए उन्हें अस्पताल पहुंचाने हिमांशु श्रोत्रिय और सुकृत शर्मा ने हाईकोर्ट जज की कार छीनी थी। मामले में उन पर केस दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया है। कोर्ट ने जमानत भी खारिज कर दी। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री सहित नवनिवार्चित सीएम मोहन यादव ने छात्रों के साथ हुई इस घटना को गलत बताया है। इसी तरह भाजपा सहित कई संगठनों के कार्यकर्ताओं ने छात्र सुकृत शर्मा ओर हिमांशु के उपर हुई इस कार्यावाही को न्यायोचित नहीं बताया है।

बता दें कि शिवपुरी के छात्र सुकृत शिवपुरी से पढ़ाई पूरी कर ग्वालियर मे अपनी आगे की पढ़ाई कर रहे थे। बह घटना के दिन वह एवीबीपी द्धारा दिल्ली में आये​जित तीन दिवसीय सम्मेलन से बापिस लौट रहे थे। बता दें छात्र सुकृत के पिता का हाल में आॅपरेशन हुआ है। डॉक्टर ने उन्हें तनाब और टेंशन की बातों से दूर रखने को कहा है। जिसकी बजह से सुकृत के​ पिता को भी मामले का पता नहीं है।

घर पर सुकृत की मां ओर उसकी बहन अकेली है। पिता के उपचार के कारण उनको अखबार तक पढ़ने नहीं दिया जा रहा है। पिता को मामले का पता नहीं ​है। बहीं मामले में एवीवीपी केे कार्यकर्ता अब हिमांशु और सुकृत के समर्थन में मीडिया कैंपेन शुरू करने के साथ-साथ प्रदेश में चरणबद्ध आंदोलन करने की तैयारी में जुट गए है।​

फिलहाल देखना यह है कि जिन छात्रों के साथ प्रदेश का बरिष्ठ नेतृत्व साथ है। ओर जिस जज के साथ यह हुआ उसने भी शिेकायत नहीं की। फिर भी सेवा के भाव से मदद कर रहे छात्रों को डाकैत बताकर पुलिस ने कार्यवाही की है। वह किस हद तक सही है। इसमें अंतिम फैंसला देखने का इंतजार है।

बता देे कि जिले की पीके यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. रणजीत सिंह यादव की जान बचाने के फेर में दो स्टूडेंट्स को जेल जाना पड़ा। उन पर डकैती का केस दर्ज किया गया है। इनमें से एक छात्र शिवपुरी का रहने वाला है। इकलौते बेटे के जेल जाने की सूचना पिता को नहीं दी गई है। पिता के ब्रेन का ऑपरेशन हुआ है। अब बेटी ही सबकुछ कर रही है। मां का कहना है कि जज साहब बेटे को माफ कर दें, उसने किसी की जान बचाने के लिए यह सब किया है।

मामले में सीएम डॉ. मोहन यादव ने डीजीपी से कहा कि युवकों पर डकैती की धारा लगाना न्यायोचित नहीं लगता। वे आपराधिक पृष्ठभूमि के नहीं हैं। युवकों ने मानवीय दृष्टि से तो सही कार्य किया लेकिन उनका तरीका गलत था। संपूर्ण परिस्थितियों को देखते हुए जांच के पश्चात कार्यवाही करना ठीक होगा इसलिए जांच कराएं। मंगलवार को जेल भेजे गए दोनों लॉ छात्रों की रात वहीं गुजरी। बुधवार सुबह बुखार आने और घबराहट होने की शिकायत पर जेल प्रबंधन ने उन्हें ग्वालियर में न्यू जेएएच के आईसीयू में भर्ती कराया।​ ​​​​​​

बता दे कि शिवपुरी के टीवी टॉवर के रहने वाले सुकृत शर्मा की मां अंजना शर्मा ने कहा- बेटा दिल्ली में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के तीन दिवसीय सम्मेलन में शामिल होने दिल्ली गया था। सम्मेलन में शामिल होकर 14 साथियों के साथ रविवार रात दिल्ली से दक्षिण एक्सप्रेस से ग्वालियर के लिए रवाना हुए थे। आगरा के पास रात में अचानक शोर हुआ। पता चला कि कोच में कोई व्यक्ति बेहोश हुआ है।

पता चला कि पीके यूनिवर्सिटी शिवपुरी के वीसी प्रो. रणजीत सिंह यादव (68) को हार्ट अटैक आया था। मुरैना आते-आते उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई। हेल्पलाइन पर कॉल किया तो बताया गया कि ग्वालियर स्टेशन पर एंबुलेंस बाहर खड़ी मिलेगी। सुबह 4 बजे स्टेशन आते ही सभी बच्चे बेहोश हालत में प्रोफेसर को स्टेशन के बाहर लेकर आए। यहां पर एंबुलेंस नहीं थी। सामने एक कार दिखाई दी। उन्होंने कार के चालक से प्रोफेसर को अस्पताल तक ले जाने के लिए कहा, लेकिन उसने मना कर दिया। एंबुलेंस का काफी देर तक इंतजार किया। कार ड्राइवर से कहा कि हमारे साथ चलो और उसे छोड़कर वापस चले आना। चालक राजी नहीं हुआ, तब मजबूरीवश बच्चों ने कार की चाबी ली। बेहोश व्यक्ति को कार से अस्पताल लेकर गए। उन्हें नहीं पता था कि वह कार जज साहब की है।

कार के पीछे-पीछे पुलिस की 25 गाड़ियां अस्पताल पहुंच गईं। बच्चों ने तत्काल कार की चाबी उन्हें सौंप दी। एफआईआर में डकैती की धारा लगाई गई है। इस बारे में कहा जा रहा है कि बच्चों ने डेढ़ घंटे बाद कार की चाबी दी, इसलिए डकैती की धारा लगी है। घटना के बाद बेटे से कोई बात नहीं हुई है। बेटा जाने-अनजाने किसी की जान बचाने के लिए गाड़ी लेकर गया था। बेटे ने अपराध नहीं किया है। जान बचाते समय वह सही और गलत का फैसला नहीं कर पाया। जज साहब उन्हें माफ कर दें। यह सबकुछ किसी की जान बचाने के लिए बच्चों ने किया है। उन्हें बरी करना चाहिए।

छात्र सुकृत की मां ने बताया वह पढ़ाई में शुरुआत से ही अच्छा है। शिवपुरी से ही उसने फर्स्ट डिवीजन में 12वीं पास की है। 6 साल से वह ग्वालियर में रहकर पढ़ाई कर रहा है। बीए-एलएलबी की पढ़ाई पूरी कर अब ग्वालियर के माधव कॉलेज से एलएलएम कर रहा है। बेटा वकालत की पढ़ाई कर रहा है, इसीलिए उसने जान बचाने को प्राथमिकता दी। मां ने बताया कि सुकृत चौथी कक्षा में था, उसी वक्त से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखा में जाने लगा था। इसके बाद वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ा रहा। डकैती के आरोपी हिमांशु श्रौत्रिय जेयू और सुकृत शर्मा माधव लॉ कालेज में पढ़ते हैं। हिमांशु एबीवीपी का महानगर मंत्री और सुकृत सह महानगर मंत्री हैं।

हिमांशु और सुकृत ने कहा कि हमने तो इंसानियत के नाते जान बचाने की कोशिश की थी। हमें पता चला कि कोई व्यक्ति बेहोश हुआ है। अटैक आने के बाद व्यक्ति का हालत बिगड़ रही थी। मुंह से झाग निकल रहा था। ट्रेन चलने लगी, जिसे हम लोगों ने चेन पुलिंग कर रोका। बीमार यात्री को बाहर लेकर आए। प्लेटफॉर्म से बाहर निकले तो वहां एंबुलेंस नहीं थी।

पोर्च में एक कार खड़ी थी। बेहोश यात्री की हालत को देखते हुए हमारे पास सोचने का समय नहीं था। उद्देश्य सिर्फ उन्हें अस्पताल पहुंचाकर उनकी जान बचाना था, इसलिए कार से उन्हें अस्पताल ले गए। वहां हम लोगों को पता चला कि उनकी मौत हो गई। वे शिवपुरी की पीके यूनिवर्सिटी के कुलपति हैं। हम लोगों ने जो किया, वो इंसानियत के नाते किया। अगर हमारी जगह दूसरा होता, तो शायद वो भी ऐसा ही करता। किसी की जान बचाने से बड़ा धर्म कोई नहीं।

हाईकोर्ट जज की कार छीनने वाले छात्रों पर वह धाराएं लगाई गई हैं, जो कभी चंबल के डाकुओं पर लगती थीं। इनके सख्त प्रावधानों के चलते आसानी से जमानत नहीं मिल पाएगी। छात्रों के वकील भानुप्रताप सिंह चौहान के अनुसार इन पर मध्यप्रदेश डकैती और व्यपहरण प्रभावित क्षेत्र अधिनियम की धारा 11, 13 और आईपीसी की धारा 395 के तहत केस दर्ज किया गया है। बुधवार को सत्र न्यायालय ने दोनों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। गुरुवार को दोनों ने हाईकोर्ट में जमानत अर्जी लगाई, जिस पर अगले हफ्ते सुनवाई की संभावना है। तब तक इन्हें जेल में ही रहना होगा।

बताया है कि ट्रेन में यात्री के बेहोश होने की सूचना स्टेशन मास्टर को दी थी, लेकिन उन्होंने कोई व्यवस्था नहीं की। स्टेशन पर जब कार्यकर्ता प्रो. रणजीत सिंह को अस्पताल ले जाने की जद्दोजहद कर रहे थे, तब जीआरपी-आरपीएफ के जवान मूकदर्शक बने थे। उन्होंने कहा कि हिमांशु और सुकृत के समर्थन में मीडिया कैंपेन शुरू करने के साथ-साथ प्रदेश में चरणबद्ध आंदोलन किया जाएगा।

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