भगोरिया मेला: मेले में शामिल होने आते थे युवक और युवती, दोनों पसंद करते और वही से भाग जाते थे,महिलाएं अंगारों से निकलती थी

संजीव जाट @ बदरवास। आपने अभी तक सुना होगा कि परिचय सम्मेलन के जरिए आजकल युवा और युवती अपने जीवन साथी की तलाश करते है। यहां दोनों का परिचय होने के बाद दोनों वैबाहिक बंधन में बंध जाते है। यह प्रक्रिया भले ही आज आधुनिक लगती है। परंतु ऐसी ही प्रक्रिया बदरवास क्षेत्र में पुराने जमाने से चली आ रही है। यह उत्सब भी होता है होली पर ही है।

होली का उत्सव लोगों के मन-मुटाव ही दूर नहीं करता, बल्कि दिलों को भी जोड़ता है। ऐसा दिलों को जोडऩे वाला है भगोरिया मेला। 20 साल पहले तक खैराई के मेला में युवा भागकर अपना जीवन साथी चुनते थे, लेकिन ये परम्परा इतिहास बनकर रह गई है। बावजूद इसके मेला की रंगत और परम्परागत ढोल-मांदल पर होने वाले नृत्य लोगों में स्पंदन पैदा कर देते है।

होली से पहले मार्च को भगोरिया का मेला पाटन में लगेगा। जहां २० हजार से ज्यादा आदिवासी मेला का लुत्फ और खरीददारी करने पहुंचेंगे। कि २० साल पहले युवा-युवती के मन मिलते थे और वे मेला से भाग जाते थे। इस झगड़ा को शांत करने राशि तय की जाती थी, पंचों द्वारा मामला हल कराया जाता था और विवाह पूर्ण हो जाता था। अब परिजन रिश्ते तय कराते हैं। मेला अब भी आकर्षक लगता है।

क्या है भगोरिया मेला
आदिवासी समुदाय में प्रचलित भगोरिया मेला होली और उसके पहले लगने वाला ग्राम खैराई में हैं। जहां आदिवासी समुदाय में आने वाले भील, भिलाला, पटेलिया, बारेला समाज के लोग बाजार करने पहुंचते हैं। २० साल पहले यहां समाज के युवा-युवती एक-दूसरे को पसंद करते और भाग जाते थे। लेकिन अब ये प्रचलन कम हो गया है, लेकिन मेला की अन्य परम्मराओं में कोई कमी नहीं आई है। समाज की युवतियां आकर्षक श्रृंगार करके मेला में आती हैं। युवा पान खिलाते हैं। नृत्य होते हैं। यह मेला होली के दिन लगता है।

यहां लगते हैं भगोरिया मेला
शिवपुरी जिले के बदरवास विकास खण्ड के ग्राम खैराई में भगोरिया मेला उत्साह से लगता है। बदरवास से 35 किमी दूर खैराई गांव में होली लगाया जाता है

मन्नत पूरी होने पर झूलते है मचान पर
ग्राम खैराई में लगने बाले मेले में जिस युवक युवती की मन्नत पूरी होती है उसे फिर मन्नत पूरी होने पर मचान पर झुलाया जाता है। महिलाए भी आग के अंगारों से निकलती है और सुहागन का श्रृंगार चढ़ती है। परंतु अब बक्त के साथ साथ यह मेला भी खत्म सा हो गया है। यहां पहले मेले में युवतियां टोलियों में एक ही रंग के कपडे पहनकर आती थी। साथ ही चांदी के आभूषण पहनकर वह मेले का आनंद लेती थी। उसके बाद वह यहां ही अपना जीवन साथी तलाश लेती थी और यहां से ही वह अपने जीवनसाथी के साथ भाग जाती थी।

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