एक ऐसा गांव जो महज 8 साल में इतिहास बन गया, कारण जानेंगे तो चौक जाएगे ,यहां युवाओं की मौत के कारण पूरा गांव खण्डर बन गया

मुकेश रघुवंशी @ ​बदरवास। आज हम आपको एक ऐसे गांव से बाकिब कराने जा रहे है। जो ​महज एक ऐसा गांव है जो मह​ज 8 साल में ही खण्डर में तब्दील हो गया। इस गांव में लाईट है,बिजली है, स्कूल है, पर छात्र नहीं है। मकान तो है परंतु वह पूरी तरह से खण्डर है खण्डर होने के पीछे की बजह है कि अब इस गांव में कोई नहीं रहता। दसअसल हम बात कर रहे है जिले के बदरवास ब्लॉक के ग्राम पंचायत बूडा ढोंगर के ग्राम सुरजनपुरा की। यह एक ऐसा गांव है अब इतिहास बन गया। यह गांव इतिहास भी महज 8 साल में बना है। जहां अब इस गांव में संसाधन तो है परंतु इस गांव में कोई रहता नहीं है।

दरअसल बदरवास ब्लॉक के गांव सुरजनपुरा जो कि हाईवे से महज डेढ किमी की दूरी पर एक पहाड पर स्थिति है। ​इस गांव में लगभग 30 से 40 आदिवासी परिवार निवास करते थे। जिसके चलते शासन ने इस गांव में पानी के लिए हेडपंप,जाने के लिए रोड,बच्चों के स्कूल के लिए यहां स्कूल की व्यवस्था करते हुए बिजली विभाग ने इस गांव के लिए बिजली व्यवस्था भी की। परंतु यह सभी व्यवस्थाएं 8 साल पहले से अ​स्तिवहीन हो गई है। यह गांव देखते ही देखते खण्डर में तब्दील हो गया है।

गांव के सरपंच अरूण यादव ने बताया है कि यहां आज से 8 साल पहले आदिवासी बस्ती हुआ करती थी। इस गांव के लोग यहां रहते थे। परंतु यहां कुछ दिनों बाद गांव में एक बीमारी आई और उस बीमारी के चलते गांव के युवाओं की मौत होने लगी। लगातार एक के बाद तीन से चार घरों के चिराग इस बीमारी से बुझ गए। जिसके चलते भौले भाले मासूमों ने इस गांव में किसी उपरी चक्कर का आभास हुआ और उन्होंने अपने बने बनाए घरों को छोडकर गांव से कूच करना उचित समझा और इसी के चलते ग्रामीणों ने यह गांव छोड दिया।

सरपंच अरूण यादव ने बताया है कि यहां मेहरवान आदिवासी पुत्र डब्लू आदिवासी,अमरसिंह आदिवासी और अर्जुन आदिवासी की महज 30 से 35 साल की उम्र में ही अचानक मौत हो गई थी। जिसके चलते यहां रहने बाले आदिवासी परिवार इसे देवीय प्रकोप समझकर यहां से पलायन करने को मजबूर हो गए। अब यह सभी परिवार बूढा डोंगर की आदिवासी बस्ती में निवास कर रहे है।

शासन को लग रहा है चूना
यह एक ऐसा गांव है जहां गांव के हिसाब से सुविधाएं तो सभी है परंतु यह गांव खण्डर में तब्दील होते हुए यहां कोई रहबासी नहीं है। यहां स्कूल है शिक्षक है परंतु यहां पडने के लिए बच्चे न​हीं है। यहां भारत सरकार के टैक्सपेयरों के पैसे को किस तरह से बरबाद किया जा रहा है आप समझ ही सकते है। जब 8 साल से यह गांव अस्तित्व में ही नहीं है तो फिर इस गांव में इन सुख सुविधाओं के नाम पर लाखों रूपए को वर्वाद किया गया है।

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