तीन CMO नपे, अब बारी अध्यक्ष की? गायत्री के भविष्य पर टिकी निगाहें, भोपाल की मुहर बांकी, पढ़िए पूरी पटकथा

प्रिंस प्रजापति@शिवपुरी। जिले में बीते कुछ दिनों से चल रहे नपा के घमासान के बीच रोज एक नया मामला सामने आ रहा है। सबसे पहले इस पूरी कहानी को आसान शब्दों में समझने का प्रयास करते है।
इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत उस समय हुई जब गायत्री शर्मा अपनी ही किचिन केविनेट भी नहीं संभाल पाई, गायत्री शर्मा की किचिन केविनेट के सदस्य गौरव सिंघल को अचानक किचिन केबिनेट से हटा दिया। जिसके चलते गौरव सिंघल ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए प्रेस वार्ता की। इस प्रेस वार्ता के बाद गायत्री शर्मा पर गंभीर आरोप लगाए गए। तभी इस पिक्चर में राजू गुर्जर की एंट्री हुई और उन्होंने भी गायत्री शर्मा पर महज एक ठेकेदार को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया।
गायत्री शर्मा के तीन साल के कार्यकाल के कुछ दिनों पूर्व से जब गायत्री शर्मा के विरोध के पार्षद एकजुट होकर करेरा के बगीचा सरकार पर पहुंचते है और वहां कसम खाते है कि वह सभी एकजुट रहेंगे। ओर अविश्वास प्रस्ताव लेकर आयेगे। अगर संख्या बल कम हुआ तो सभी एकजुट होकर इस्तीफा सौंपेंगे । पार्षदों के इस एकजुट होकर बगीचा सरकार पर कसम खाई कि वह या तो गायत्री शर्मा को हटाएंगे या फिर अपना इस्तीफा सौंपेंगे।
परंतु इसी बीच पार्षदों ने एकजुट होकर नगर पालिका के भ्रष्टाचार की शिकायत कलेक्टर को की। आला कमान ने इस मामले को दबाने के उद्देश्य से इस मामले में ठेकेदार सहित दो सब इंजीनियर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर मामले को संभालने का प्रयास किया।
परंतु इसी बीच पार्षदों का गुट इस मामले को लेकर आला कमान सिंधिया जी, प्रभारी मंत्री और भोपाल तक अपनी पीड़ा सुनाने पहुंचा। परंतु इस बीच आलाकमान को गलत फीडबैक बताते हुए गलत जानकारी पहुंचाई गई।
बताया गया है कि उसके बाद इस मामले में जब आलाकमान ने इस मामले की जानकारी जुटाई तो सामने आया कि गायत्री शर्मा के खिलाफ शहर में असंतोष का माहौल है। जिसपर आलाकमान ने दोनों ही पक्षों को अपने अपने पार्षदों के साइन कराकर देने की बात कही ।
जिसपर विरोधी ग्रुप ने इस मामले में 32 पार्षदों के साइन कराकर जिलाध्यक्ष को सौंप दिए। परंतु आलाकमान अगर गायत्री शर्मा को पद से हटाता है तो पूरे प्रदेश में लगभग सभी नगर पालिका और नगर पंचायत में इसी तरह का असंतोष है। जिसके चलते पूरे प्रदेश में इस तरह का माहौल निर्मित हो जाएगा।
अब अगर पहली शुरुआत सिंधिया जी के गढ़ से होती है तो उसका पूरे प्रदेश में मैसेज भी गलत जाता तो सिंधिया जी ने इस मामले को मैनेज करने की जिम्मेदारी प्रशासन को देते हुए भ्रष्टाचार की जांच कराई। इस जांच में सामने आया कि गायत्री शर्मा के पूरे कार्यकाल में कई घोटाले हुए है। जिसमें प्रदेश स्तर से गायत्री शर्मा के कार्यकाल में रहे निवर्तमान सीएमओ को कारवाही को जद में लेते हुए उन्हें सस्पेंड कर दिया।
दूसरी ओर अब एक साथ 18 पार्षदों ने एकजुट होकर बगीचा सरकार के चरणों में अपना इस्तीफा सौंपा उसके बाद माधव चौक हनुमान मंदिर से डीजे और देश भक्ति गानों के साथ सभी पार्षद पैदल पैदल अपने इस्तीफा देने कलेक्टर कार्यालय पहुंचे, जहां बीच रास्ते में पब्लिक ने इस पार्षदों के इस निर्णय का स्वागत करते हुए उन्हें माला पहनाई।
अब इस मामले में प्रशासन स्तर पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि एक साथ भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच 18 इस्तीफा कैसे स्वीकार किए जाए। जिसके चलते पार्षदों ने जिन भ्रष्टाचार की शिकायत की कलेक्टर ने उनकी जांच कराकर भोपाल भेज दी।
जहां भोपाल से इस मामले में तीनों सीएमओ को दोषी ठहराते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। साथ ही इस घोटाले के लिए नपा अध्यक्ष गायत्री शर्मा की भी जवाबदारी तय की गई है।
बताया जा रहा है कि अब गायत्री शर्मा को भ्रष्टाचार के इस आरोप के चलते नगर पालिका अधिनियम के तहत पद से हटाया जाएगा। अगर यह नहीं हुआ तो फिर सभी पार्षदों के इस्तीफा मंजूर हो गए तो फिर शहर की नगर पालिका भंग हो जाएगी और फिर के शासन पर उपचुनाव कराने का भार बढ़ जाएगा।
इस्तीफा हुआ मंजूर तो क्या होंगे हालात
नगर पालिका अधिनियम में अगर एक दो पार्षद इस्तीफा देते है तो उपचुनाव के हालत बनते है परंतु एकसाथ लगभग आधे पार्षद इस्तीफा देते है तो नगर पालिका परिषद भंग हो जाएगी। इस दौरान अगर अध्यक्ष का कार्यकाल मात्र 6 माह रहता है तो फिर चुनाव को टाल सकते है परंतु अभी शिवपुरी नगर पालिका का कार्यकाल 2 साल बचा है।
इसके साथ ही नगर पालिका अधिनियम की धारा 41 व 42 के अनुसार, यदि नगर पालिका परिषद कामकाज करने की स्थिति में न रहे या बार-बार विवाद या इस्तीफों से गतिरोध बने, तो राज्य सरकार उसे भंग कर सकती है।
भंग होने पर प्रशासनिक कामकाज के लिए सरकार अस्थायी प्रशासक (ADM/SDM या कलेक्टर) नियुक्त करती है। और फिर निर्धारित समय आमतौर पर 6 माह से 1 साल के भीतर में पुनः चुनाव कराए जाते हैं। अब देखना यह है कि इस मामले में भोपाल से क्या नया आदेश आता है। इस मामले में कलेक्टर ने इस्तीफों पर विचार करने का समय बुधवार तक का दिया है । जिसके चलते अब माना जा रहा है कि बुधवार से पहले इस मामले को लेकर भोपाल से कोई नया आदेश आयेगा। जो इस जल्दी आग को बुझाने का काम करेगा। कुल मिलाकर अब गेंद पूरी तरह से प्रशासन के पाले में है। देखना यह है कि अब यह लड़ाई अपने अंतिम दौर में कब पहुंच पाती है।