सरकार के गाल पर तमाचा मारती यह तस्वीर: जिंदा तो छोडों मृत व्यक्ति तक को एम्बुलेंस नहीं मिली,बाईक से लाश को लेकर गए परिजन

शिवपुरी। यह तस्वीर शहर में राम राज्य को बयां करने के लिए काफी है। एक और मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार चारों और राम राज्य की बांते करती है। नेता बडे बडे मंच से लंबी लंबी घोषणाएं करते है। परंतु धरातल पर जिम्मेदार अधिकारी नेताओं को रामराज्य के झूठे सपने दिखा देते है और जब हकीकत सामने आती है तो एक प्रेसनोट जारी कर उसे छुपाने का प्रयास करते है। आज की जो तस्वीर सामने आई है वह शहर भाजपा सरकार और सरकार की नाकामी को पूरी तरह से खोलती हुई दिखाई दे रही है।
जानकारी के अनुसार श्योपुर जिले के कराहल तहसील के बांसरैया गांव के रहने बाले 18 साल के बाबू उर्फ हरि सिंह आदिवासी पुत्र श्रीचंद आदिवासी के भाई रघुवीर आदिवासी ने बताया कि उसका भाई बाबू आदिवासी शनिवार की शाम 6 बजे टॉयलेट करने घर के पीछे गया था। वापस आने पर उसने सांप के काटने की बात कही थी। बाबू की तबियत बिगड़ने लगी थी। इसके बाद उसे बाइक पर बैठाकर पोहरी के स्वास्थ्य केंद्र लाया गया था। यहां से उसे एम्बुलेंस के जरिए जिला अस्पताल भेजा गया था। जिला अस्पताल में डॉक्टर ने कुछ देर उपचार किया फिर बाद में बाबू को मृत घोषित कर दिया था।
रघुवीर आदिवासी ने बताया कि उसके भाई बाबू को मृत घोषित करने के बाद उसके शव को बाहर ट्रामा सेंटर की गैलरी रख दिया था। कुछ देर के बाद उनकी सहायता के लिए कोई नहीं आया था। मदद न मिलने पर उन्हें बाइक पर शव लेकर ले जाना पड़ा था। इस दौरान उनके साथ उनकी मां फूलवती और उसके दो परिचित भी थे। जिनकी मदद से शव को बाइक पर रखकर ले गए।
बता दें रात के समय मृतक की मां फूलवती और भाई रघुवीर शव को पोलो ग्राउंड के पास सड़क पर रखकर शव ले जाने के लिए करीब आधा घंटे तक वाहन का इंतजार करते रहे। इसके बाद भी सड़क पर पड़े शव पर किसी जिम्मेदार की नजर नहीं पढ़ी थी। रघुवीर के मुताबिक एक बाइक पर शव को ले जाना मुनासिब नहीं हो रहा था। इसके चलते शव को सड़क पर रखा था, लेकिन कोई वाहन शव ले जाने की तैयार नहीं हुआ।
1500 रुपये देकर भाड़े पर की टैक्सी
रघुवीर का कहना था कि दहशरे की रात पोलो ग्राउंड के पास से कोई वाहन मदद करते हुए शव ले जाने को राजी नहीं हुआ था। इसके बाद शव को बाइक पर रखकर बस स्टैंड के आगे श्योपुर रोड पर सड़क पर रख दिया था। यहां करीब डेढ़ घंटे के बाद एक टैक्सी वाला शव गांव ले जाने को राजी हुआ। लेकिन उसने 1500 रुपये की मांग की थी। मौके पर इतने पैसे थे नहीं, उसे पूरे पैसे घर पहुंचकर देने की बात पर राजी कर लिया था। रात ढाई बजे वह अपने गांव पहुंचे। यहां सुबह 9 बजे भाई के शव का अंतिम संस्कार किया गया।
बता दें 18 साल के युवक की संदिग्ध मौत जिला अस्पताल में हुई थी। इसके बावजूद उसके शव को ले जाने दिया। यहां ड्यूटी डॉक्टर ने न ही पुलिस को सूचना दी और न ही जिला अस्पताल के मुख्य द्वार पर तैनात सिक्योरिटी गार्डों ने बाइक पर शव रखकर ले जाने से रोका।
शहर में बाइक पर शव लिए घूमते रहे परिजन, दो थानों के सामने से गुजरे
युवक की संदिग्ध मौत के बाद परिजन उसके शव को लेकर शहर में घूमते रहे। शव को दो जगह सड़क पर भी रखे रहे, लेकिन किसी ने पीड़ित आदिवासी परिवार की मदद नहीं की। इतना ही नहीं शव को टैक्सी रखकर 45 किलोमीटर से दूर का सफर भी किया गया। इस दौरान शव के साथ टैक्सी सिरसौद और पोहरी थाने के सामने से भी गुजरी, लेकिन किसी की नजर शव ले जाती टैक्सी पर नहीं पड़ी।
सिविल सर्जन बोले- खुद से उठा ले गए शव
इस मामले में जिला अस्पताल के सिविल सर्जन बीएल यादव का कहना है कि रात साढ़े आठ बजे युवक को परिजन एम्बुलेंस से लेकर पहुंचे थे। उसे पोहरी से रेफर किया गया था। ओपीडी पर्चा बनने के डॉक्टर ने जांच के बाद युवक को मृत घोषित कर दिया था। परिजन युवक को सांप के काटने की बात कह रहे थे। शव को गैलरी में रख दिया था। लेकिन परिजन युवक की झाड़फूंक कराने की बात कह रहे थे। परिजन शव को अपने साथ चोरी छुपे अस्पताल से बाइक पर रखकर ले गए। बाद में इसकी सूचना अस्पताल चौकी पुलिस को दी गई थी।