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CEO शैलन्द्र आदिवासी का एक और फर्जीवाड़ा: आदिवासियों की जमीन अपने नाम करा उस पर करबा दिया लाखों का सरकारी काम

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प्रिंस प्रजापति@शिवपुरी। खबर पोहरी जनपद कार्यालय से आ रही है। जहां जनपद सीईओ शैलेन्द्र आदिवासी ने आदिवासियों की 30 से 40 बीघा जमीन खरीद कर उस प्राईवेट जमीन पर सामुदायिक भवन का निर्माण कराया गया हैं। सरकारी फंड से तालाब खुदवा दिया है। गांव के सरपंच पति का कहना है कि यहां यह सभी जमीन स्थानीय आदिवासियों की थी जोकि सीईओ शैलेंद्र आदिवासी ने उनसे खरीद ली है और उस जमीन पर उनके द्धारा ही यह निर्माण और खुदाई करवाई गई है।

यहां बता दे कि सीईओ शैलेंद्र आदिवासी हमेशा विवादों में रहे है। इसके बाद कई बाद पोहरी से ट्रांसफर के बाद लगातार चौथी बार पोहरी में आकर सरकार को चूना लगा रहे है। इस प्रकार के मामले उजागर होने से शैलेंद्र आदिवासी पुन: सवालों के घेरे में है। बताया गया है कि बर्तमान जनपद सीईओ ने अपनी जाति में परिवर्तन कर बचपन में ही धाकड़ से आदिवासी करा लिया था।

बताया गया है कि सीईओ शैलेन्द्र आदिवासी मूलत: सुझान गड़ी कैलारस के रहने बाले है। इनका पिता का नाम जबाहर लाल धाकड़ एवं माता का नाम सकुंतला धाकड़ है। जबकि कागजो में इनके माता पिता बाबूलाल आदिवासी व रामपति आदिवासी नवलपुरा कैलारस के निवासी है। इतना हीं नहीं बर्तमान में जहां इनका मकान है बह पूरी बस्ती धाकड़ समाज के लोगो से भरी हुई है। इनका मकान नं 21 है।

अब बताया गया है कि शैलेन्द्र आदिवासी के धाकड़ माता पिता की समग्र आईडी में 1 जनवरी 2014 को शैलेन्द्र की मृत्यु हो चुकी है। जबकि आदिवासी परिवार के साथ शैलेन्द्र का नाम दर्शाया जा रहा है। इनके द्धारा पोहरी में आदिवासियों की विक्रय से वर्जित भूमि को खरीदकर उस पर सरकारी पैसे से सामुदायिक भवन और तालाबों को खुदवाया जा रहा है।

बता दे कि ऐसवाया पंचायत के मड़खेड़ा में सर्वे नंबर 94 जोकि बर्तमान में शैलेन्द्र आदिवासी के नाम है उसमें में सामुदायिक भवन स्वीकृत करा शासन के लाखो रूपए का दुरुपयोग किया गया है। इनता ही नहीं आदिवासियों से आवास या अन्य प्रकार के प्रलोबन देकर उनकी भूमि खरीदकर उस पर अपनी रजिस्ट्री के बाद निजी जमीन पर करीब 12 लाख 85 हजार का तालाब सरकारी फंड से बनवाया गया है।

बताया गया है कि ऐसवाया पंचायत में सर्वे नं 276,357 की भूमि सीईओ शैलेंद्र आदिवासी के नाम है अन्य भूमि भी आदिवासियों से खरीदकर रजिस्ट्री करा ली थी उनके नामांतरण होना बांकि है। इतना ही नहीं उसी भूमि पर डग पॉइंट भी निर्माण किए गए है जोकि करीब 7—7 लाख रूपए इसमें सरकारी फंड से निकाले गए है। और निजी भूमि में सरकारी काम किए गए है।

सीईओ शैलेन्द्र आदिवासी भ्रष्टाचार के मसीहा बन चुके है। बताया गया है कि इनके द्धारा पोहरी जनपद के सरपंचो से पंचायतो के कार्योे में से ब्लैकमेल कर 15 प्रतिशत की रिश्वत ली जाती है। तथा जिन सरपंचो के द्धारा रिश्वत नहीं दी जाती तो उन्हे काम नहीं करने दिया जाता है उन्हे फसाने की धमकी भी सीईओ शैलेंद्र द्धारा दी जाती है। इसके साथ जानकारी में पता चला है कि शैलेंद्र आदिवासी कई पंचायतो के कार्य में पार्टनर रहकर अपनी हिस्सेदारी ले रहा है। जब इस संबंध में सरपंचो ने पूछा कि आप जो हिस्सा ले रहे हो वह कहां जाता है तो सीईओ का कहना था कि मुझे अधिकारी और जनप्रतिनिधियों को उनके प्रतिशत का हिस्सा देना होता है। सीईओ द्धारा धोरिया में 4 लाख 22 हजार मनरेगा का फर्जी बिल तैयार कर फर्जी पैमेंट निकला लिया गया है।

बता दे कि ऐसवाया पंचायत के इस मामले की शिकायत कलेक्टर के यहां भी की जा चुकी है। जिसकी जांच की जा रही है। फिलहाल इस मामले के उजागर होने और सीईओ शैलेंद्र आदिवासी का लगातार पोहरी में पदस्थ होना कई सवाल खड़े करता है।

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