बलारपुर की प्राचीन कथा: दिन में तीन रूपों में होते है मां के दर्शन, मां को लाखा बंजारा लेकर आया था, चट्टान फाडकर निकली थी

सतेन्द्र उपाध्याय @ शिवपुरी। आज शारदीय नवरात्रि का 7 वां दिन है। देश में चैत्र नवरात्रि की धूम है। हर कोई अपने अपने स्तर से मां की आराधना में जुटे हुए है। शिवपुरी में मां के प्राचीन मंदिरों में बलारपुर में मां राज राजेश्वरी मां नाग नागेश्वरी,कैला माता,काली माता,बैराज माता,भदैरा बाली माता सहित कई प्राचीन मंदिर है। इसके साथ ही आज हम स्वतंत्र शिवपुरी के पाठकों को बलारपुर माता के प्राचीन मंदिर की कथा बताने जा रहे है।
बलारपुर मंदिर शहर से लगभग 23 किमी दूर सुरवाया के घने जंगल में है। यहां मां घनघोर जंगल में विराजमान है। पहले यह जंगल तो था परंतु यह माधव राष्ट्रीय उद्यान के अधीन नहीं था। अब यह माधव राष्ट्रीय उद्धान के अधीन है। मां की यहां स्थापना को लेकर बैसे तो कई कहानियां सामने आती है। परंतु एक कहानी जो आज भी प्रचलित है वह यह है कि मां बलारी को जगंल में लाखा बंजारा लेकर आया था। कहानीयों में बताते है कि लगभग 1000 साल पहले राजा नल के राज्य से भी पहले मां के मंदिर की स्थापना की गई थी। हालांकि इसकी पुरातत्व विभाग की और से कोई अधिकारी पुष्टि नहीं है।
मंदिर के मुख्य महंत प्रयाग भारती ने बताया है कि 1973 से मंदिर की सेवा में लगे हुए हैं। मंदिर से 2 किमी दूर मां का प्राकट्य स्थल भी मौजूद है, जहां आज भी पत्थरों के बीच में दरार है। बताया जाता है कि इसी स्थान से मां बलारी प्रकट हुईं थीं। मंदिर में लगी मूर्तियां उस प्राचीनतम समय की पुष्टि करती हैं। मंदिर के महंत प्रयाग भारती बताते हैं कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार उनके गुरू स्व: महंत शिव भारती जी ने 1952 में किया था।
इससे पहले मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो गया था, लेकिन उनके गुरू शिव भारती जी के अथक प्रयासों से मंदिर आज वैभव की ओर अग्रसर है। यह मंदिर शहर से 23 किमी दूर भयावह जंगल में स्थित है, जहां मां की भव्य मूर्ति मंदिर में स्थित है। बताया जाता है कि मां एक दिन में अपने तीन रूप बदलती हैं, लेकिन अभी तक किसी ने ऐसा होते नहीं देखा है। इसका खण्डन करते हुए श्री भारती ने कहा है कि मां उन्हीं लोगों को अपने तीन रूपों में दर्शन देती हैं जो मां की भक्ति में उनके रूपों के दर्शन की सत्यता जानने की नियत से वहां आता है।
मां को बाल रूप में लाने को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसे महंत प्रयाग भारती ने वर्णन करते हुए बताया कि गुजरात से बंजारा समुदाय के लोग व्यापार करने के लिए अन्यत्र प्रदेशों में पहुंचने के लिए जंगल के रास्तों का प्रयोग करते थे और कई स्थानों पर वह अपना डेरा डालते थे। एक लाखा बंजारा नाम का व्यापारी अपने परिवार और जाति के लोगों के साथ गुजरात से उत्तर प्रदेश की ओर जाने के लिए बलारपुर ग्राम से कूच कर रहा था, बलारपुर से 2 किमी दूर झाला क्षेत्र में उसने अपना डेरा डाला।
जहां प्रतिदिन बंजारा समुदाय के बच्चे खेलते थे, वहीं एक बालिका भी उन बच्चों के साथ खेल में शामिल होती थी जिसे लाखा ने देख लिया और उसके बारे में जानकारी एकत्रित की, लेकिन उसका कोई भी पता उसे नहीं लग सका, वहीं वह बालिका भी वहां से गायब हो गई। और एक दिन रात्रि में लाखा को उस बालिका ने दर्शन दिया और उससे कहा कि वह उसे बैलगाड़ी में बैठाकर सुरवाया ले चले और लाखा को बालिका ने एक शर्त दी कि वह तब तक पीछे मुड़कर नहीं देखेगा जब सुरवाया न आ जाये अगर उसने उस शर्त का उल्लंघन किया तो वह उसी स्थान पर उतर जायेगी।
बालिका की शर्त मंजूर कर वह उसे बैलगाड़ी से सुरवाया की ओर कूच कर गया लेकिन रास्ते में उसके मन में संशय हुआ कि बालिका ने ऐसा क्यों कहा, कहीं इसके पीछे कोई रहस्य तो नहीं और उसने शर्त का उल्लंघन करते हुए मुड़कर देख लिया तभी बालिका बैलगाड़ी से उतरकर अंर्तध्यान हो गई। जब वह बालिका अंतध्र्यान हो गई जो लाखा बंजारा समझ गया कि यह कोई देवी है मेरी एक गलती के कारण देवी अंतध्र्यान हो गई। लाखा एक चट्टान से पर अपना सर पटक-पटकर रोने लगा,बताया गया है मां का दिल पिघल गया और वह उसी चट्टान को फाड कर मूर्ति रूप में प्रकट हो गई।
बताया यह गया है कि जिस जगह मां प्रकट हुई उस जगह से लाखा ने मां की मूर्ति को ले जाकर एक मढिया बना दी और अब यह मंदिर बलारपुर के नाम से प्रसिद्ध है। पूर्व में यह मंदिर देखरेख के अभाव में ध्वस्त हो गया था क्योंकि उक्त जंगल में डकैतों का आंतक था जिस कारण कोई भी वहां नहीं जाता था। धीरे.धीरे उनके गुरू महंत शिव भारती जी ने उक्त मंदिर पर पहुंचकर वहां जीर्णोद्धार कराया और मंदिर पर पूजा अर्चना शुरू की गई।